यह चित्र उस समाधी स्थल का है जहाँ शहीदो की याद में हर वर्ष भादों सुदी दसम को विशाल मेला भरता है .इस वर्ष यह मेला ३० अगस्त २००९ को भरा है .
सिर साठे रुंख रहे तो भी सस्तो जाण
अर्थात पेड मनुष्य के लिए अधिक मूल्यवान है .
भावार्थ
राजस्थान के जोधपुर जिले की लूनी पंचायत का गाँव खेजडली विश्व प्रसिद है .यहाँ के लोग पर्यावरण की रक्षा ,पेड़ पोधो की सुरक्षा के लिए अपनी जान भी दे चूके है .
खेजडली गाँव का नाम खेजडी वृक्ष के कारण ही है .इस नाम को नई दिशा दी एक विश्नोई महिला अमृतादेवी जिनके नेतर्त्व में ३६३ विश्नोईयों ने अपना बलिदान दिया .
१२ दिसम्बर सन्१७३० संवत १७८७ के भाद्रपद की दसमी को जब जोधपुर के महाराजा अजयसिंह ने निर्माण हेतु चूना पकाने के लिए अपने कर्मचारियों को लकड़ी लाने आदेश दिया और उस समय विश्नोइयो के गाँव में ही मोटी लकडी मिल सकती थी ,अत वे कारिंदे खेजडली पहुचे तो वंहा के विश्नोइयो ने उन्हें पेड़ काटने से रोका इस पर राजा ने उतेजित हो सेनिको को कहा जो भी जो भी पेड़ को काटने से रोकना चाहता है उसको पेड़ के साथ काट डालो ।अमृतादेवी सभी विश्नोई पेडो की रक्षा के लिए पेड़ से चिपक गए देखते ही देखते ८४ खेडो के विश्नोई पेडो से चिपक गये और उन कारिंदों को ललकारा की सबसे पहिले हमें काटो बाद में पेड़ काटना .इस तरह लगातार २७ दिन तक वहा युद्घ चलता रहा और ७२ महिलाये ,२९१ पुरुषों ने जान की बली दे दी परन्तु एक भी पेड़ नही कटने दिया. अमृतादेवी के अन्तिम शब्द थे "सिर सांठे रुंख रहे तो भी सस्तो जाण "
खेजडली शहीदों को शत शत नमन
सिर साठे रुंख रहे तो भी सस्तो जाण
अर्थात पेड मनुष्य के लिए अधिक मूल्यवान है .
भावार्थ
राजस्थान के जोधपुर जिले की लूनी पंचायत का गाँव खेजडली विश्व प्रसिद है .यहाँ के लोग पर्यावरण की रक्षा ,पेड़ पोधो की सुरक्षा के लिए अपनी जान भी दे चूके है .
खेजडली गाँव का नाम खेजडी वृक्ष के कारण ही है .इस नाम को नई दिशा दी एक विश्नोई महिला अमृतादेवी जिनके नेतर्त्व में ३६३ विश्नोईयों ने अपना बलिदान दिया .
१२ दिसम्बर सन्१७३० संवत १७८७ के भाद्रपद की दसमी को जब जोधपुर के महाराजा अजयसिंह ने निर्माण हेतु चूना पकाने के लिए अपने कर्मचारियों को लकड़ी लाने आदेश दिया और उस समय विश्नोइयो के गाँव में ही मोटी लकडी मिल सकती थी ,अत वे कारिंदे खेजडली पहुचे तो वंहा के विश्नोइयो ने उन्हें पेड़ काटने से रोका इस पर राजा ने उतेजित हो सेनिको को कहा जो भी जो भी पेड़ को काटने से रोकना चाहता है उसको पेड़ के साथ काट डालो ।अमृतादेवी सभी विश्नोई पेडो की रक्षा के लिए पेड़ से चिपक गए देखते ही देखते ८४ खेडो के विश्नोई पेडो से चिपक गये और उन कारिंदों को ललकारा की सबसे पहिले हमें काटो बाद में पेड़ काटना .इस तरह लगातार २७ दिन तक वहा युद्घ चलता रहा और ७२ महिलाये ,२९१ पुरुषों ने जान की बली दे दी परन्तु एक भी पेड़ नही कटने दिया. अमृतादेवी के अन्तिम शब्द थे "सिर सांठे रुंख रहे तो भी सस्तो जाण "
खेजडली शहीदों को शत शत नमन
good
ReplyDeletebasically ,i m from U.P
par pata nahi kyon mujhe rajasthan se bahut jyada lagab hain
rajasthan ke baare main janna,wahan ke logo se baat karna bahut accha lagta hain
Shahidon ko shat shat naman.
ReplyDelete