Sunday, August 30, 2009

सिर साठे रुंख

यह चित्र उस समाधी स्थल का है जहाँ शहीदो की याद में हर वर्ष भादों सुदी दसम को विशाल मेला भरता है .इस वर्ष यह मेला ३० अगस्त २००९ को भरा है .




सिर साठे रुंख रहे तो भी सस्तो जाण

अर्थात पेड मनुष्य के लिए अधिक मूल्यवान है .

भावार्थ

राजस्थान के जोधपुर जिले की लूनी पंचायत का गाँव खेजडली विश्व प्रसिद है .यहाँ के लोग पर्यावरण की रक्षा ,पेड़ पोधो की सुरक्षा के लिए अपनी जान भी दे चूके है .
खेजडली गाँव का नाम खेजडी वृक्ष के कारण ही है .इस नाम को नई दिशा दी एक विश्नोई महिला अमृतादेवी जिनके नेतर्त्व में ३६३ विश्नोईयों ने अपना बलिदान दिया .
१२ दिसम्बर सन्१७३० संवत १७८७ के भाद्रपद की दसमी को जब जोधपुर के महाराजा अजयसिंह ने निर्माण हेतु चूना पकाने के लिए अपने कर्मचारियों को लकड़ी लाने आदेश दिया और उस समय विश्नोइयो के गाँव में ही मोटी लकडी मिल सकती थी ,अत वे कारिंदे खेजडली पहुचे तो वंहा के विश्नोइयो ने उन्हें पेड़ काटने से रोका इस पर राजा ने उतेजित हो सेनिको को कहा जो भी जो भी पेड़ को काटने से रोकना चाहता है उसको पेड़ के साथ काट डालो ।अमृतादेवी सभी विश्नोई पेडो की रक्षा के लिए पेड़ से चिपक गए देखते ही देखते ८४ खेडो के विश्नोई पेडो से चिपक गये और उन कारिंदों को ललकारा की सबसे पहिले हमें काटो बाद में पेड़ काटना .इस तरह लगातार २७ दिन तक वहा युद्घ चलता रहा और ७२ महिलाये ,२९१ पुरुषों ने जान की बली दे दी परन्तु एक भी पेड़ नही कटने दिया. अमृतादेवी के अन्तिम शब्द थे "सिर सांठे रुंख रहे तो भी सस्तो जाण "
खेजडली शहीदों को शत शत नमन

Saturday, August 29, 2009

पराई थाली




१.पगा बलती दीखे कोनी, डूंगर बलती दीखे

दूसरों की बुराई जल्दी दिखाई देती है

२.पराई थाली में घी घणो दीखे

पराई चीज ज्यादा अच्छी लगती है

भावार्थ

उपरोक्त दोनों राजस्थानी कहावतें मनुष्य स्वभाव को दर्शाती है
इनके अनुसार मनुष्य अपने परायो की मानसिकता का शिकार है
ख़ुद के अवगुण नजर नही आते और जो मिला उसमे संतोष नही होता .

Tuesday, August 25, 2009

खेती बाडी


1.बलद मार खेती

अर्थात परिणाम के लिए अधिक परिश्रम करना

२.मूंडा में कवा माथा में ठोला

अर्थात इनाम और सजा साथ में देना

३.बकरी रे मूंडा में नारियल कोणी सोवे

अर्थात हर चीज योग्यता अनुसार अच्छी लगती है

४.काजल से काई आखिया भारी

अर्थात मामूली फर्क पड़ना

५.जीव री जडी

बहुत प्यारा होना

Sunday, August 23, 2009

पूत सपूत



१.पूत
सपूत तो क्यूँ धन संचे पूत कपूत तो क्यूँ धन संचे

अर्थात धन का संचय नही करना चाहिये

२.पूत रा पग पालना में ही दीखे
अर्थात बच्चे का अच्छे बुरे का बचपन में ही लग जाता है

३.पूत की माँ परे सी काम की माँ उरे सी
अर्थात काम करने वाले का महत्व होता है

४.काते जिका का सूत जाणे जिका का पूत
अर्थात उत्पादन करने वाले का स्वामित्व होता है
५.दूधो नहाओ पूतों फलो
अर्थात सोभाग्य एवं वंश वृधि का आशीर्वाद

Friday, August 21, 2009

आसोज रो तावड़ो

१.आसोजा रो तावड़ो जोगी हो गया जाट
अर्थात बरसात के बाद की गर्मी असहनीय होती है
२.दो पिसे री हांडी गयी कुता री जात पहचानी गयी
अर्थात कम कीमत में असलियत जानना
३.भूल्यो बामण भेड़ खाई ,अब खाए तो राम दुहाई
अर्थात एक भूल को बार बार नहीं दोहराना
४.घर का जोगी जोगना आन गाँव का सिद्ध
अर्थात अपनों से ज्यादा परायो को महत्व देना
५.नामी चोर मारो जावे नामी शाह कमा खावे
अर्थात प्रसिद्दि हर जगह काम आती है

Thursday, August 20, 2009

राजस्थानी भजन

जय बाबा री
बाबो भली करसी
खम्मा खम्मा हो धणिया रुणेचा रा धणिया
थाने तो ध्यावे आखो मारवाड़ हो, हो आखो गुजरात हो
हो अजमाल जी रा कंवरा

राजस्थानी कहावतें मुहावरे


१.दूर रा ढोल सुहाना लागे
अर्थात दूर से हर वस्तु सुंदर नजर आती है जरुरी नहीं है कि वह पास से भी सुंदर हो
२. तीतर पांखी बादली,विधवा काली रेख वा बरसे ,आ घर करे इण में मीन न मेख
अर्थात तीतर के पंख जैसे बादल बरसते हैं और विधवा श्रृंगार करे तो पुनर्विवाह करती है
३.रामदेव जी ने मिले जिका ढेड ही ढेड
अर्थात महान पुरुषों को लगातार संघर्ष करना पड़ता है
४.आंगनों पुठरो हो तो मांडनो सोहे
अर्थात सुंदर स्त्रियाँ श्रृंगार से और भी सुंदर लगती है
५.कांख में छोरो नगर में ढिंढोरो
अर्थात सुलभ वस्तु को हर जगह तलाशना